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यही है मालधारी
सबसे प्यारे हमको बादल है
और उनकी बूंदों की झड़ी
लेकिन यह भी वक़्त आया
जब बारिश न रुकी
और ढा दिए गाँव के सात बच्चे
और सात सौ गाय
तब भी हमने बनाए रखी
अपने दिलों की दिलेरी
चलते गिरना, गिर के उठना
फिर चलना, यही है मालधारी
यही है मालधारी
जल, ज़मीन और जंगल से जितना लेते
उससे ज़्यादा वापिस देने का व्यवहार जगाया
लोग कहें हमें गंवार, पागल या भोपा
हमने तो इसी परंपरा का गीत गाया
यही है मालधारी
रखते हैं लोग भरोसा हम पे और हम उन पे
क्योंकि हमने किया है कुदरत से वादा
दुनिया के जंजाल हमको रास नहीं आते
हमको तो प्यारा है अपना जीवन सीधा साधा
यही है मालधारी
ज्ञान विज्ञान का ज़माना है भाई, सुधर जाओ
लोग कहते हैं, कब तक चलोगे पुराने ख्याल
पे?
सच है, दुनिया चढ़ गयी चाँद और मंगल
हम अब भी चल रहे गाय-भैंस की चाल पे
कोई न लाया चाँद से दूध और मखन
बाज़ार तो चल रहे अपने ही माल पे
तो हमने कहा भाई तुम ही सुधर जाओ
और चारागाहों को रखो संभाल के
यही है मालधारी
कला और कसब का संग
कहानी और लोक गीत का रंग
सुरों में बांसुरी और चंग
ऐसे ही करते रहेंगे हम सत्संग
यही है मालधारी
चलते गिरना, गिर के उठना
मालधारियों की फ़ितरत है
नवसर्जन की शक्ति जो रखती
हमको पालती वो कुदरत है
प्रक्रति, पशु, परिंदे और प्रेम
इन सब में हम सहमत हैं
मालधारी रहेंगे तब तक
जब तक कुदरत की रहमत है